अरे कांग्रेसियो शर्म करो, दिमाग मत खोखला करो
गुजरात क मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी से विशेष जाच टीम ने पूछताछ क्या कर ली की कांग्रेसियो को चिल्लाने का मौका मिल गया. कांग्रेसियो ने अब बिग बी अमिताभ बच्चन से पूछा है की वो बोले की वो गुजरात दंगे की निंदा करते है या नहीं? इन कांग्रेसियों को ये बात ८ साल बाद दिमाग में आई है और वो भी उस इन्सान से पूछ रहे है जिसने इन्ही कांग्रेसियो की बोफोर्स जैसी घिनोनी राजनीती से तंग आकर तौबा कर ली. अमिताभ एक कलाकार है और वो गुजरे के ब्रांड अम्बेस्स्डोर है. उनका कम है प्रचार करना और पैसे कमाना न की इन नेताओ की तरह बोफोर्स और अन्य सौदों की तरह दलाली करना.
गुजरात दंगे का एक बार फिर भूत जगा है. जिन लोगो को गुजरात दंगे को लेकर इतना दुःख हो रहा है उनको समझ में नहीं आता की दागे से पहले जब अयोध्या से आ रहे ६३ हिन्दुओ को जला दिया गया तब उनकी आंखे अंधी हो गई थी. और ये तो एक प्रतिक्रिया थी. सही बात ये है आप किसी को मरोगे तो वो भी मरेगा, अब इसमें कौन कैसे मरता है और किसको क्या होता है ये तो नहीं देखा जाता. जहा तक मोदी के ऊपर आरोप लग रहे है किसी के पास उनके खिलाफ कोई साबुत नहीं है. मोदी तो तलवार ले के दंगा करने नहीं गए थे? फिर उन पे इतना बवाल क्यों मच रहा है? कांग्रेसियो को शर्म नहीं आती की इंदिरा गाँधी की हत्या की बाद आखिर क्यों सीखो का नरसंहार किया गया? क्यों पंजाब में आज भी सिख न्याय पाने क लिए भटक रहे है? क्यों ये कांग्रेसी उन सीखो को न्याय नहीं देते? किसने किया थे पंजाब में सीखो के नर संहार? अगर किसी राज्य में दंगे के लिए मुख्यमंत्री को दोषी ठहराया जा सकता है तो महाराष्ट्र में हर साल १०-२० दंगे होते है? कितनी बार मुख्यमंत्री को सजा मिली है? कितनी बार किसी ने आरोप लगाये. आतंकी घटना में महाराष्ट्र में कितने लोग मरे जाते है तब क्यों नहीं इन कांग्रेसियो की आत्मा उन मृतको के प्रति जगती है? मरे हुए कांग्रेसी मुर्दों की तरह रह रह कर कफ़न से उठ जाते है? इनको कौन बताये की आज भारत के कश्मीर भारत के हाथ से निकल रहा है लेकिन ये मुस्लिमो की ऐसी गुलामी कर रहे है की उनको अलग से आरक्षण दे रहे है? देश को मुस्लिमो के लिए ये कांग्रेसी अरक्षित कर दिए है.
इस देश की अगर आज सबसे बड़ी कोई कमी है तो वह है गद्दार मुसलमानों की इज्ज़त करना. इन कांग्रेसियों को ये समझ में नहीं आता की आज भी देश में हर तरफ दंगा और आतंकी हमला होता है लेकिन गुजरात में दंगे और आतंकी हमले के नाम नहीं है. वह विकास की गंगा बह रही है और इसका सर्टिफिकेट देश के तमाम उद्योगपति भी मोदी को दे चुके है? ये ही कारन है की कांग्रेसियो को गुजरात की सत्ता से दूर रहना खल रहा है? आज जिस बिग बी को ये कांग्रेसी अछूत मन रहे है कभी वही बिग बी इन कांग्रेसियो की सत्ता के लिए भगवन होते थे. आज इन कांग्रेसियो को मुसलमानों से इतना प्यार है की देश आतंक में जल रहा है पैर इनको कुछ नहीं पड़ी है. मुंबई में जब ६ माह तक उत्तरभारतीयो की पिटाई होती रही तो इसी कांग्रेस की सर्कार तमाशा देखती रही और कोई करवाई नहीं की. तब क्यों नहीं महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को जिम्मेदार ठराया गया. अरे कांग्रेसियो देश के विकास के बारे में सोचो, राजनीती से ऊपर उठो और एक अछे देश के बारे में सोचो. मोदी और अमिताभ के चक्कर में पड़कर अपनी उर्जा मत ख़राब करो .मोदी इस देश के अरबो हिन्दुओ के भगवन है तुम्हारे जैसे ३० % मुसलमानों के लिए देश को बेचने का कम नहीं कर रहे है .
Tuesday, March 30, 2010
Tuesday, March 9, 2010
आरक्षण की वैशाखी क्यों चाहिए?
हिंदुस्तान जैसे विश्व के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश के संसद में जब संसद ही अखाडा के पहलवान की तरह लड़ने लगे या फिर संसद की गरिमा को भूलकर उसका उपहास उड़ने लगे तो फिर कैसे उम्मीद की जा सकती है की हमारा देश एक महान देश है? ८ मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पैर संसद में महिलाओ को ३३ फीसदी आरक्षण को लेकर समाजवादी पार्टी और लालू यादव की पार्टी ने जो हंगामा किया, वह तो शर्मनाक है और उनके सांसदों को निलंबन की सजा मिल चुकी है और कोंग्रेस ने ३३ फीसदी आरक्षण को पास करा लिया है. लेकिन सवाल यह भी उठता है की क्या आज़ादी के ६० साल बाद भी हमें अपंग की तरह महिलाओ को वैशाखी का सहारा देना उचित है? क्या ६० साल में हम इतने विकसित नहीं हो पाए की महिलाओ को उन्नत बना सके? आज हम अपने आपको दुनिया की महान आर्थिक शक्तियों में से एक गिनते है और है भी. लेकिन जब हम अपने ही देश में इसका आकलन करते है तो पते है की हम दुनिया वालो के सामने ज़बरदस्त तरक्की हासिल कर ली है लेकिन ये भूल जाते है की आज भी देश की ४० करोड़ जनता को दो टाइम का भोजन नसीब नहीं हो पता. ४० करोड़ लोग ऐसे भी है जो कदों टाइम के भोजन क्र व्यवस्था करते है लेकिन जब कोई बीमारी आ जाती है तो उनके पास आत्महत्या करने के सिवा कुछ नहीं रहता.
अगर आज हम ये मन ले की वैशाखी के बिना महिलाये कुछ नहीं कर सकती तो ये गलत है. दर असल देश की राजनितिक पार्टिया इस तरह का खेल खेलती है और वोट हथियाने का कम करती है. अगर हम किसी बच्चे कोया एक दो साल तक पकड़ के चलते है और फिर उन्हें छोड़ देते हुई और वे गिरते पड़ते चलना सिख लेते है. तो क्या हम ६० साल बाद महिलाओ को उनके हल पैर नहीं छोड़ सकते? और आज वैसे भी महिलाये कहा पीछे है. कई ऐसे सेक्टर है जहा महिलाये पुरुषो की तुलना में आगे है. और आज अगर जरुरत है तो महिलाओ पर होनेवाले बलात्कार, अत्याचार को रोकने की जो कभी नहीं होता. आज अगर हम महिलाओ की बात कारे तो ऐसे हजारो महिलाये है जिन्होने अपने बल पे एक मुकाम हासिल किया है. इसमें मायावती, सुषमा स्वराज, लता मंगेशकर, सानिया मिर्ज़ा, इंदिरा नुई, चंदा कोचर, शिखा शर्मा, किरण मजुमदार, हेमामलिनी, माधुरी दिक्सित, कल्पना मोरपारिया, मीरा कुमार, पी टी ऊषा जैसे कितने नाम है, जो इतिहास रच रहे है. खुद पोलिटिक्स में महिलाओ को अगर देखे तो राष्ट्रपति से लेकर लोकसभा अध्यक्ष तक वही है. फिर आरक्षण की वैशाखी देना कहा तक उचित है? मेरा तो ये मन्ना है की आरक्षण की सुविधा ही ख़त्म कर दी जाये और जो गरीब है उन्हें आर्थिक रूप से उनकी जरुरत के टाइम मदद की जाये.
हिंदुस्तान जैसे विश्व के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश के संसद में जब संसद ही अखाडा के पहलवान की तरह लड़ने लगे या फिर संसद की गरिमा को भूलकर उसका उपहास उड़ने लगे तो फिर कैसे उम्मीद की जा सकती है की हमारा देश एक महान देश है? ८ मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पैर संसद में महिलाओ को ३३ फीसदी आरक्षण को लेकर समाजवादी पार्टी और लालू यादव की पार्टी ने जो हंगामा किया, वह तो शर्मनाक है और उनके सांसदों को निलंबन की सजा मिल चुकी है और कोंग्रेस ने ३३ फीसदी आरक्षण को पास करा लिया है. लेकिन सवाल यह भी उठता है की क्या आज़ादी के ६० साल बाद भी हमें अपंग की तरह महिलाओ को वैशाखी का सहारा देना उचित है? क्या ६० साल में हम इतने विकसित नहीं हो पाए की महिलाओ को उन्नत बना सके? आज हम अपने आपको दुनिया की महान आर्थिक शक्तियों में से एक गिनते है और है भी. लेकिन जब हम अपने ही देश में इसका आकलन करते है तो पते है की हम दुनिया वालो के सामने ज़बरदस्त तरक्की हासिल कर ली है लेकिन ये भूल जाते है की आज भी देश की ४० करोड़ जनता को दो टाइम का भोजन नसीब नहीं हो पता. ४० करोड़ लोग ऐसे भी है जो कदों टाइम के भोजन क्र व्यवस्था करते है लेकिन जब कोई बीमारी आ जाती है तो उनके पास आत्महत्या करने के सिवा कुछ नहीं रहता.
अगर आज हम ये मन ले की वैशाखी के बिना महिलाये कुछ नहीं कर सकती तो ये गलत है. दर असल देश की राजनितिक पार्टिया इस तरह का खेल खेलती है और वोट हथियाने का कम करती है. अगर हम किसी बच्चे कोया एक दो साल तक पकड़ के चलते है और फिर उन्हें छोड़ देते हुई और वे गिरते पड़ते चलना सिख लेते है. तो क्या हम ६० साल बाद महिलाओ को उनके हल पैर नहीं छोड़ सकते? और आज वैसे भी महिलाये कहा पीछे है. कई ऐसे सेक्टर है जहा महिलाये पुरुषो की तुलना में आगे है. और आज अगर जरुरत है तो महिलाओ पर होनेवाले बलात्कार, अत्याचार को रोकने की जो कभी नहीं होता. आज अगर हम महिलाओ की बात कारे तो ऐसे हजारो महिलाये है जिन्होने अपने बल पे एक मुकाम हासिल किया है. इसमें मायावती, सुषमा स्वराज, लता मंगेशकर, सानिया मिर्ज़ा, इंदिरा नुई, चंदा कोचर, शिखा शर्मा, किरण मजुमदार, हेमामलिनी, माधुरी दिक्सित, कल्पना मोरपारिया, मीरा कुमार, पी टी ऊषा जैसे कितने नाम है, जो इतिहास रच रहे है. खुद पोलिटिक्स में महिलाओ को अगर देखे तो राष्ट्रपति से लेकर लोकसभा अध्यक्ष तक वही है. फिर आरक्षण की वैशाखी देना कहा तक उचित है? मेरा तो ये मन्ना है की आरक्षण की सुविधा ही ख़त्म कर दी जाये और जो गरीब है उन्हें आर्थिक रूप से उनकी जरुरत के टाइम मदद की जाये.
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