आरक्षण की वैशाखी क्यों चाहिए?
हिंदुस्तान जैसे विश्व के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश के संसद में जब संसद ही अखाडा के पहलवान की तरह लड़ने लगे या फिर संसद की गरिमा को भूलकर उसका उपहास उड़ने लगे तो फिर कैसे उम्मीद की जा सकती है की हमारा देश एक महान देश है? ८ मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पैर संसद में महिलाओ को ३३ फीसदी आरक्षण को लेकर समाजवादी पार्टी और लालू यादव की पार्टी ने जो हंगामा किया, वह तो शर्मनाक है और उनके सांसदों को निलंबन की सजा मिल चुकी है और कोंग्रेस ने ३३ फीसदी आरक्षण को पास करा लिया है. लेकिन सवाल यह भी उठता है की क्या आज़ादी के ६० साल बाद भी हमें अपंग की तरह महिलाओ को वैशाखी का सहारा देना उचित है? क्या ६० साल में हम इतने विकसित नहीं हो पाए की महिलाओ को उन्नत बना सके? आज हम अपने आपको दुनिया की महान आर्थिक शक्तियों में से एक गिनते है और है भी. लेकिन जब हम अपने ही देश में इसका आकलन करते है तो पते है की हम दुनिया वालो के सामने ज़बरदस्त तरक्की हासिल कर ली है लेकिन ये भूल जाते है की आज भी देश की ४० करोड़ जनता को दो टाइम का भोजन नसीब नहीं हो पता. ४० करोड़ लोग ऐसे भी है जो कदों टाइम के भोजन क्र व्यवस्था करते है लेकिन जब कोई बीमारी आ जाती है तो उनके पास आत्महत्या करने के सिवा कुछ नहीं रहता.
अगर आज हम ये मन ले की वैशाखी के बिना महिलाये कुछ नहीं कर सकती तो ये गलत है. दर असल देश की राजनितिक पार्टिया इस तरह का खेल खेलती है और वोट हथियाने का कम करती है. अगर हम किसी बच्चे कोया एक दो साल तक पकड़ के चलते है और फिर उन्हें छोड़ देते हुई और वे गिरते पड़ते चलना सिख लेते है. तो क्या हम ६० साल बाद महिलाओ को उनके हल पैर नहीं छोड़ सकते? और आज वैसे भी महिलाये कहा पीछे है. कई ऐसे सेक्टर है जहा महिलाये पुरुषो की तुलना में आगे है. और आज अगर जरुरत है तो महिलाओ पर होनेवाले बलात्कार, अत्याचार को रोकने की जो कभी नहीं होता. आज अगर हम महिलाओ की बात कारे तो ऐसे हजारो महिलाये है जिन्होने अपने बल पे एक मुकाम हासिल किया है. इसमें मायावती, सुषमा स्वराज, लता मंगेशकर, सानिया मिर्ज़ा, इंदिरा नुई, चंदा कोचर, शिखा शर्मा, किरण मजुमदार, हेमामलिनी, माधुरी दिक्सित, कल्पना मोरपारिया, मीरा कुमार, पी टी ऊषा जैसे कितने नाम है, जो इतिहास रच रहे है. खुद पोलिटिक्स में महिलाओ को अगर देखे तो राष्ट्रपति से लेकर लोकसभा अध्यक्ष तक वही है. फिर आरक्षण की वैशाखी देना कहा तक उचित है? मेरा तो ये मन्ना है की आरक्षण की सुविधा ही ख़त्म कर दी जाये और जो गरीब है उन्हें आर्थिक रूप से उनकी जरुरत के टाइम मदद की जाये.
Tuesday, March 9, 2010
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