Friday, March 6, 2009

भ्रष्टाचारी नेताओ ने भारत का एक अरब करोड़ रूपये रखा है स्विस बैंक में


भारत के भ्रष्टाचारी नेता देश की जनता को किस तरह से मुर्ख बनते है, इसका पता आम जनता को नही चलता। लेकिन अगर एक रिपोर्ट पर गौर करें तो पता चलता है की ये लोकतंत्र के भ्रष्टाचारी नेता काले धन की एक अरब करोड़ रूपये स्विट्जरलैंड के स्विस बैंक में भारत का रखा है। ये राशिः इतनी बड़ी है की इससे भारत पर जितना विदेशी क़र्ज़ है उसे भारत चुका सकता है। जबकि भारत के हर नागरिक में अगर इस पैसे को बात दिया जाए तो हर इंसान को एक लाख रूपये से ज्यादा मिलेगा। भारत की बैंक जहा पैसा जमा करने पर ब्याज देता है वही स्विस बैंक पैसे रखने पर पैसे लेते है। यानि अपना पैसा रखने par भी ब्याज देते है। हालाँकि स्विस बैंक के नियम के मुताबिक vo किसी के पैसेडा kनही कर सकता है इसलिए सभी देश के नेता अपने काले धन को इ e है। सूचना अधिकार के तहत भी इस ओ kओ हासिल नहीं किया जा सकता हालाँकि स्विस बैंक ने खुलासा करने का सकता दिया है जिससे नहीं धन को रखने इससे की पहले नैजीरिया गई है । हालाँकि isse pahle naijiriya ने स्विस बैंक के काले धन को अपने देश में का अधिकार जीत लिया है . isliye bharat bhi yah adhikar jeet sakta hai . naijeeriya ke rashtrapati saani abacha ne apni praja ke 33 karod american doller jama karaye the. abacha ko pad bhrasht karke vaha ke shasko ne swiss bank se rashtra ka dhan vapas lane ki ek lambi ladai ladi aur we isme safal bhi huye. jab naijeeriya aisa kar sakta hai to kya bharat aisa nahi kar sakta? is samay desh me chunav ka mahaul hai aise me votro ko netao se ye to poochhna hi chaiye. NDA ke jorj farnandis ne kuchh samay pahle kaha tha ki jab ve boforce ki faail khol rahe the tba unhe atal bihari vajpayee ne mana kar diya. isse ye sabit hota hai congress ke pas bhi kuchh bjp netao ki file thi jisse boforce dab gaya. vaise swiss banko me dhan vapsi kr 3 sharte hoti hai. isme pahla ye ki kya dhan atankvadi gatividhiyo ko chalane ke liye jama kiya hai, dusra kya dhan nasheele padartho se mila hai aur tisra kya dhan desh ke kanoon ko bhang karke mila hai? isme se tisra karan hamare netao par lagoo hota hai ki unhone kanoon bhang karke in paiso ko swiss bank me rakha hai. isliye chunav se pahle desh ki janta ko in netao se ye jaroor poochhna chahiye ki wo swiss bank ka dhan kaha se laye hai aur bharat sarkar ke pass jama karaye.

Tuesday, February 24, 2009

भूखे - नंगों का आस्कर

भूखे नंगों का आस्कर

इससे बड़ा भारत का कोई और दुर्भाग्य नहीं हो सकता की उसे विदेशी अस्कार अवार्ड लेने के लिए अपना ज़मीर अपनी इज्ज़त बेचनी पड़ेभारत की गरीबी और उसके नंगे भूखे बच्चों की तस्वी को पूरी दुनिया के सामने बेचकर हमने बहुत बड़ा आस्कर अवार्ड जीत लिया है पूरा देश इस अवार्ड के पैरो टेल दब गया है। बात समझ में नहीं आती की क्या भारत को विदेशी तमगा हासिल करने के लिए उसकी नंगी तस्वीर को बेचना जरूरी है? किस देश में इस तरह की भूखमरी और नंगी तस्वी नहीं है? लेकिन क्या कोई देश अपनी गरीबी को बेचकर विदेशी तमगा हासिल कर रहा हैएशियाई देशो में भारत के अलावा पाकिस्तान, अफगानिस्तान, चाइना, अफ्रीका जैसे जाने कितने देश है जहा इतनी गरीबी है की पूरी दुनिया देख रही है लेकिन वो देश अपनी गरीबी को बेचकर आस्कर नहीं लेना चाहते हैदरअसल विदेशी फिल्मकार हमेशा भारत की ऐसी तस्वीर विश्व के सामने पेश करना कहते है जिससे भारत विश्व के सामने अपनी बातो को सही ढंग से रख सके। भारत आज विकसित देशो की सूचि में शामिल होने की दिशा में बढ़ रहा है। पैर भारत की इस विकास यात्रा को कोई नहीं देखना चाहताये सही बात है की भारत में आज भी गरीबी कम नहीं हैलेकिन क्या हम नीजी तौर पैर अपने घर की बात किसी को बताते है? हमारे घर में क्या पाक रहा है हम अपने पडोसियों को इसकी जानकारी क्यों दे? लेकिन अंग्रेजी फिल्मकार भारत के इसी दृश्य को विश्व के सामने रखना चाहते हैपिछले ६० सालो के भारतीय आज़ादी के इतिहास में क्या ऐसी कोई फिल्म नहीं बनी जो मुख्य धारा में आस्कर जितने में कामयाब नहीं रही? लैला मजनू, सोहनी महिवाल, हीर राँझा, उमराव जान, शोले, दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे, साजन, हम आपके है कौन, ग़दर, चक दे इंडिया और हाल की रिलीज फिल्म गजनी ने बॉक्स ऑफिस पैर सभी रिकॉर्ड तोडे, तब क्यों नहीं आस्कर दिया गया? इसलिए की उसमे भूखे भारत की तस्वीर नहीं थी और दूसरी बात की उसे किसी अंग्रेजी फिल्मकार ने नहीं बनाया थास्लम दोग को भी इसलिए आस्कर जैसा एक पुरस्कार दे दिया गया क्यों की उसे अंग्रेजी फिल्मकार ने बनाया थावैसे इससे पहले भी भारत को आस्कर मिला हैपहला आस्कर सत्यजीत रोय को लाइफ टाइम अचीवमेंट के लिए और दूसरा आस्कर भानु अथैया को १९८३ में ड्रेस के लिए मिला हैकहने का मतलब जैसे जैसे भारत मजबूत हो रहा है वैसे वैसे उसे पश्चिमी देशो के तमगे की जरूरत पद रही है यानि जिस भारत का संगीत पूरी दुनिया में सबसे आगे है उसके संगीत को अब पश्चिमी देशो के आधार पर नंबर मिलेगाअब भारत की संगीत को पश्चिमी देशो का प्रमाणपत्र चाहिएउनकी अहमियत से हमारी संगीत की विरासत आंकी जायेगी? जिस विदेशी तमगों को लेकर आज पूरा देश झूम रहा है उनको ये भी पता नहीं की इस फिल्म के बाल कलाकारों की क्या हाल है? पूरी दुनिया में भारत की नंगी तस्वीर को बेचकर एक विदेशी तमगा हमने हासिल कर लिया है लेकिन क्या आज भी देश के करोडो गरीब, आदिवासी, बीमारू और भूखे नंगे बच्चो को हम एक टाइम की रोटी का जुगाड़ कर पाएंगे? क्या हम अपने शक्तिशाली भारत की तस्वीर दिखाकर एक विदेशी तमगा हासिल कर पाएंगे? शायद ये संभव नहीं हैक्यों की पश्चिमी देश हमारी विजय पर हमें तमगा नहीं देता है वो तो हमारी हार पर हमें एक तमगा देकर ये कहना चाहेगा की और दिखाओ नंगी भूखी तस्वीर और ले जाओ तमगों का उपहारजय हो जय हो जय हो विदेशी तमगा की जय हो.

Friday, February 13, 2009

क्यों न हिन्दी के लिए बने सत्याग्रह का प्रारूप ?


स्वतंत्र भारत में हिन्दी को उसका उचित स्थान नही मिल सका, वह स्थान भी नही जो संविधान निर्माताओ ने उसे प्रदान किया था। इसके मुख्य रूप से दोषी राजनीतिक हैं संविधान की हिदायत के अनुसार हिन्दी को कायदे से १९६५ में संघ सरकार की भाषा बन जानी चाहिए थी। लेकिन उस समय एक दो राज्यों में हिन्दी का विरोध देखकर तत्कालिन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने एतिहासिक आश्वासन दे डाला की हिन्दी किसी पर थोपी नही जायेगी। पर आज इसका उत्तर क्या है की अंग्रेज़ी थोपी जाए?
हिन्दी की हालत आज ऐसी है की इसे विश्वस्तरीय क्या राज्य स्तर के भी सम्मेलनों की जरूरत नही है। क्यों की हिन्दी के जो राष्ट्रिय मंच या संस्थान बनाये गए है उनमे कही दृष्टि अभाव, कही अकर्मण्यता तो कही लोलुपता दिखाई देती है। और अब जरूररत यह है की हिन्दी भाषी और हिन्दी प्रेमी इस दर्द के जख्म को आत्मा में महसूस करे, इस दर्द से ही कोई ऐसा कार्यक्रम बन सकती है जो हिन्दी को उसकी सही जगह दिला सकती है।
आज हिन्दी जिस स्थिति में है उसमे सत्याग्रह के आलावा कोई दूसरा रास्ता नही है। आज उदारीकरण की मुहीम का सबसे ज्यादा खतरा भी हिन्दी को ही है। शायद इससे डरकर ही पश्चिम बंगाल के लेखकों ने अपने कलकत्ता को कोलकाता करा लिया। हिन्दी को आधुनिक भाषा के रूप में उसे विकसित करना है। उसे प्रशासन की, न्यायपालिका की, उद्योग की, व्यापार की तथा तकनीक की भाषा बनाना है। हिन्दी को कभी भी किसी भी भाषा से न तो द्वेष था और न ही है। सच तो ये है की किसी भी भारतीय भाषा से अधिक उदार हिन्दी है। यही कारन है की जितना अनुवाद दूसरी भाषाओ से हिन्दी में होता है, उतना हिन्दी से दूसरी भाषा में नही.हिन्दी का ये प्रेम बना रहना चाहिए, पर अंग्रेज़ी के साथ वह प्रेम नही होना चाहिए। इसके लिए डॉक्टर से पर्ची हिन्दी में, कलेक्टर के कार्यालय से आदेश हिन्दी में जारी हो। बैंक से पासबुक हिन्दी में, चेकबुक हिन्दी में, सरकारी कार्यालय से सभी आदेश हिन्दी में जारी हो।

इसके लिए विध्वंस नही, बल्कि ख़ुद रचना कर साइनबोर्ड को हिन्दी में करेंगे , मारेंगे नही पर मानेंगे भी नही। सुव्यवस्थित कार्यक्रम के अनुसार जिले में एक कारवाई समिति , जिला सम्मेलनों के प्रस्तावों को कार्यरूप में परिणति करने का व्यावहारिक कार्यक्रम बनाये। भारतीय लोकतंत्र में नई जान हिन्दी सत्याग्रह से ही निकल सकता है। जब लोकतंत्र भारतीयभाषा में काम करेगा तो नई लोकतान्त्रिक उर्जा फूटना निश्चित है । सभी विकसित देशों मेंउसकी राजभाषा है। तुर्की , ब्रिटेन जैसे देशों ने भाषा बदलकर अपनी भाषा अपनाए। एक अनुमान के मुताबिक पूरे विश्व में ६० करोड़ लोग हिन्दी बोलते है। हिन्दी विश्व की तीसरे नम्बर की भाषा है।
सहने की सीमा होती है आख़िर हर इंसान में
हिन्दी ही बस हो सकती है भाषा हिंदुस्तान की।
भाषा होती एक राष्ट्र की भले विविध हो बोलिया
बन सकती है सब भाषा बस हिन्दी की हम्जोलिया।

मेरे लिए हिन्दी स्वराज्य का प्रश्न है । दुनिया वालो से कह दो की गाँधी हिन्दी के आलावा कुछ नही जानता- महात्मा गाँधी।
अंग्रेज़ी यहाँ दासी के रूप में रह सकती हैबहुरानी के रूप में नही- डॉक्टर कामिल बलके.

Wednesday, February 11, 2009

हर बच्चा मोदी बने

आज जब हमारी राजनीतिक प्रणाली महज २७ फीसदी मुसलमानों के लिए देश की बाजी लगा रही है तो क्या हम ८३ फीसदी हिन्दुओ के लिए हर बच्चे को मोदी नही बना सकते ? पिछले कुछ सालो से अगर हम देखे तो देश में मुसलमानों को जो सुविधा या आरक्षण दिया जा रहा है उतना हिन्दुओ को नही दिया जा रहा है। वोट के लिए हिंदू बहुल राष्ट्र में ही आज हिन्दुओ का अपने अधिकारों को लड़ना पड़ रहा है । बड़े ही दुर्भाग्य की बात है की कुछ राष्ट्र विरोधी मामलो में एक -दो हिंदूओ की हल की गिरफ्तारी के बाद देश भर में यह मुहर लगा दी गई की हिंदू आतंकवाद भी है? हमारा हिंदुस्तान पिछले ५० सालो से आतंकवाद की ज्वाला से टक्कर ले रहा है। अगर हम इतिहास के पन्नो को पलटे तो हर एक पन्ने पर मुस्लिम आतंकवाद का ही दर्शन होता है। यह नही क़हा जा सकता की सभी मुस्लिम आतंकवादी है, लेकिन क्या यह सही नही है की सभी आतंकवादी मुस्लिम है? इसका बहुत ही पुख्ता साबुत है । केवल भारत के ही पास नही, बल्कि अमेरिका, रूस,.जापान, ब्रिटेन सहित सभी देशो के पास है। आज जिस तरह से इस्लामीआतंकवाद पूरी दुनिया के लिए विस्फोट बन कर एक खतरा बना हुआ है, जरुरत है उससे निपटने की। न की वोट के लालच में उसे पलने की।यही नही अगर हम नेशनल क्रीम ब्द्युरो की रिपोर्ट देखे तो उसमे भी मुस्लिम एक नम्बर है। अगर मुंबई, डेल्ही, और उत्तर प्रदेश सहित कुछ राज्यों की बाते करे तो बंगलादेशी मुसलिमों को राशन कार्ड , वोटर कार्ड दिए गए है । डेल्ही में ३ लाख और मुंबई में ५ लाख बंगलादेशी मुस्लिम है जिनको राशन कार्ड दिया गया है। उत्तर प्रदेश से मुंबई आनेवालों को राशन कार्ड नही मिलता है लेकिन बंगलादेशियों को मिल जाता है। दरअसल ये जो मुस्लिम राजनीती है वो देश को बहुत ही पीछे ले जा रही है। गुजरात में जब ६० राम भक्त जला दिए गए तो उसका दर्द किसी को नही हुआ, लेकिन जब उसके बाद प्रतिक्रिया में हुए दंगे में कुछ मुस्लिम मरे गए तो पूरी दुनिया में मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचार का शंख बज गया। स्थिति ये बनी की हमारी २००४ के बाद केन्द्र में आई सरकार कितनी निकम्मी रही की हिंदुस्तान के एक मुख्यमंत्री को जब कई देश वीसा देने से मन कर देते है तो ये ही सरकार मोदी पर हसती है। ये कितना बड़ा दुर्भाग्य है ?
लेकिन अब पूरी दुनिया की आंख खुली रह गई जब बिना किसी देश का दौरा किए मोदी ने इस मंदी में १२ लाख करोड़रूपये का निवेश करवा लिए। ये हिंदुस्तान में अब तक का किसी राज्य में सबसे बड़ा निवेश है। पिछले ७ सालो में देखे तो जितना आतंकवाद पूरे देश में फैला है, और हर राज्य में आतंकी घटनाये हुई है , गुजरात में महज एक बोम्ब ब्लास्ट हुआ है । ये भी मोदी मोदी की एक ऐसी उपलब्धि है, जो सभी के लिए सबक है। अगर दंगे पर काबू पाकर, कोई मुख्यमंत्री अपने राज्य को आर्थिक मोर्चे पैर मजबूत करता है तो आज के समय में उससे सफल कोई और मुख्यमंत्री नही है। इसलिए अगर देश को सफल आर्थिक मोर्चे पैर ले जाना है तो मेरादावा है इस देश का हरबालक मोदी बने, ताकि देश विश्व विजेता बन सके.
क्यों मचे वेलेंटाइन डे पर हाय तौबा ?
किसी भी वस्तू की जड़े जितना मजबूत होती है उतनी मजबूत उसकी टहनी या कोई और चीज नही हो सकती। फाउंडेशन यानि नींव मजबूत हो तो घ भी टिकाऊ होता है। अगर फाउंडेशन ही कमजोर हो या हम फाउंडेशन को बदलकर उसे किसी और रूप में ढालना चाहे तो ये सम्भव नही होता है। जो नींव हमने पहले डाल दी वो नींव हमारे जीवन की एक ऐसी मजबूत नींव होती है जिसके आधार पर हमारी हजारो नस्ल चलती रहती है. आजकल कुछ राजनीतिक लोग वेलेंटाइन पर हाय तौबा मचा रहे है.

वेलेंटाइन डे क्या है? हजारो साल पहले रोम में स्थानीय सत्ताधीश शादी के खिलाफ थे और उस टाइम रोम के एक युवक ने सत्ताधीशों के खिलाफ जाकर शादी कर ली। इस युवक की शादी के बाद सत्ताधीशों ने उसे सरेआम फांसी पर लटका दिया जिसका नाम संत वेलेंटाइन पड़ा। इसी युवक के नाम से वहा के युवको ने संत वेलेंटाइन डे को मनाना शुरू किया जो हर साल १४ फरवरी को मनाया जाता है। कुछ साल तक यह दिन रोम में मनाया जा रहा था, लेकिन जैसे जैसे ग्लोबल स्वरुप बनता गया, वैसे-वैसे पूरी दुनिया में यह प्यार का अति नाटकीय रूप फैलता गया। जहा तक हिंदुस्तान की बात है तो हिंदुस्तान में इसका प्रचालन १९९० के दशक में शुरू हुआ। हिन्दुस्तानियों की तो बात मत पूछिए।

प्यार के नाम पर यहाँ क्या -क्या होता है वो सभी को पता है। युवको में फैले इस डे का जो जानकारी है वो ये की संत वेलेंटाइन डे केवल बॉय फ्रेंड और गर्ल फ्रेंड के बीच एक अति अश्लील गतिविधिया है। १९९४ में मुझे इस बारे में मेरे एडिटर ने एक आर्टिकल लिखने को कहा तब मेरी समझ में आया का ये भी दिन किसी चिडिया का नाम है . किसी भारतीय युवक से ये पूछा जाए का उसका वेलेंटाइन कौन है तो वो अपनी गर्ल फ्रेंड के सिवा या नही कह सकता की उसकी माँ या उसके पिता भी उसके वेलेंटाइन हो सकते है. यहाँ जो वेलेंटाइन का बात है वो प्यार से सम्बंधित है. अब प्यार किसी को किसी से भी हो सकता है. जरूरी नही का वो गर्ल फ्रेंड और बॉय फ्रेंड का हो. लेकिन भारतीयों का नक़ल का भी प्रशंशा करनी होगी. जिस पश्चिमी संस्कृति का वो नक़ल कुछ सालो से कर रहे है उससे उनका नुक्सान ही हो रहा है. लाभ कुछ नही है. कहने का मतलब ये है का पश्चिमी देशो का नक़ल के चक्कर में हम उनके तो नही हो पाते है और अपनी जड़ो से भी कट जाते है। यानि न जमीं पर और न ही आसमान पर।

भारतीय सभ्यता और संस्कृति की अपनी एक मजबूत नींव है। इसके जैसा संस्कार और संस्कृति पूरी दुनिया में कही नही है। इसी संस्कृति किया बदौलत हमारा देश एक मजबूत लोकतंत्र के रूप में जाना जाता है। कोई अगर अपनी जड़ो से कट कर जीवन जीना चाहे तो सम्भव नही है। भारत त्योहारों का देश है। साल के हर महीने में कोई न कोई त्यौहार होता है। फिर विदेशो से हमें किसी त्यौहार को लाने का जरूरत क्या है? क्या हमारे त्यौहार किसी कम है? लेकिन यह जरूर है का विदेशो की तरह हमारी ये सभ्यता नही है की हम हर दिन एक अलग प्यार की तलाश करे और शाम ढलते ही उसे सूरज की किरणों के साथ विदा कर दे. हमर प्यार तो सात जन्मो का वह बंधन होता है जो कभी नही टूटता है सात जन्मो का बंधन ही इतना बड़ा लोकतंत्र को जीवित रखा है। जिस दिन ये बंधन टूट गया, ये सभ्यता और रीती रिवाज टूट गई उस दिन हमारा जीवन किसी जानवर से कम नही होगा। विदेशों में अक्सर ऐसा होता है की वह शादी किसी और के साथ जीवन किसी और के साथ तथा सार्वजानिक मंच पर किसी और के साथ। ये रिश्ते किसी भी तरह से प्यार के लिए प्रतिबद्ध नही होते. इसका उदहारण पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और मोनिका लेविंस्की के रूप में भी हम देख चुके है. हम एक भारतीय है। भारत की हर गाथा का विदेशो में जय जय कार होती है फिर हमें उनके इस बिखरे और टूटे हुए रिश्ते की क्या जरूरत है? क्या हम कोई ऐसा मॉडल नही अपना सकते जी वेलेंटाइन की तरह पूरी दुनिया में हो? हमारे पास है . वो राम और सीता की जोड़ी। भारतीय लोग महिलाओ के प्रति कितना आकर्षित होते है ये भी कम नही है। अगर कोई व्यक्ति लोकल ट्रेन में जा रहा है और उसके बगल में बैठी महिला अगर गलती से नीद में उसके ऊपर सर रख दी तो वह व्यक्ति बिना टिकेट दो-तीन स्टेशन आगे चला जाएगा। मतलब हमारे यहाँ पुरुषों का दिल इतना बड़ा होता है की उनके दिल में दर्जनों महिलाए समां जाती है लेकिन महिलाओ का दिल इतना छोटा होता है की उनके दिल में एक ही पुरूष आया पाटा है। ये भी एक अच्छी संस्कृति है। कुछ समय से कुछ लोग वेलेंटाइन का विरोध कर रहे है। मेरी समझ में या नही आता की अब आम लोग उनके कहने पैर अपना जीवन चलाएंगे या अपने जीवन का फ़ैसला ख़ुद लेंगे? बिना मतलब इस बेकार के प्यार में क्यो हाय तौबा मचाना? फिर भी भारतीय युवको को इस ग्लोबल प्यार के बाज़ार में ख़ुद को बिकने से रोकना चाहिए। बिकने का मतलब ये की इस प्यार के नाम पर बहुराष्ट्रीय कंपनिया फूलो का साथ अपने ग्रीटिंग भारतीय बाज़ार में बेच रही है और पैसे कम रही है.

Friday, February 6, 2009

एक शुरुआत

आज से मैं हिंदी ब्लॉग की दुनिया के सार्वजनिक मंच पर प्रवेश कर रहा हूं। बहुत कहना है, बहुत सारे अनुभवों और विचारों की आपसे साझेदारी करनी है। आपके प्रोत्साहन और संबल की जरूरत है। मैं मानता हूं कि हिंदी अभी राष्ट्रभाषा है, लेकिन यह एक दिन 125 करोड़ भारतवासियों के बीच जन-जन की भाषा बन जाएगी।